- Mar 06, 2025
- Richa Yadav
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आस्था की पराकाष्ठा का महा कुम्भ: दीन दयाल उपाध्याय की अवधारणा ‘देश की चित्ती’ की झलक
"जल में कुंभ, कुंभ में जल है, बाहर भीतर पानी फूटा कुंभ, जल जलहीं समाना, यह तथ कथौ ज्ञानी।" । बचपन में सीखे इस दोहे का अर्थ समझने में इतना समय लग गया I कबीर के इस दोहे में बात तो बहुत गहरी कही गई है I वह जल और कुंभ ( घड़े) का उदाहरण देकर बताना चाहते हैं कि किस प्रकार शरीर के भीतर और शरीर के बाहर एक ही परमात्मा का वास है । जिस प्रकार सागर में कुम्भ के अन्दर का जल बाहर के जल से अलग रहता है, लेकिन जैसे ही वह घड़ा टूटता है, छोटे से घड़े के जल का विलय अथाह सागर में हो जाता है। सभी अंतर लुप्त हो जाते हैं I ठीक उसी प्रकार शरीर की मृत्यु के बाद जो शरीर के भीतर की आत्मा है वह उस परमात्मा में लीन हो जाती है। शरीर के अंदर और बहार एक ही आत्म तत्त्व का वास् है I उसी परमात्मा का रूप हर जगह व्याप्त है I पर हम स्वयं को विराट चेतना से अलग समझते हैं और उससे जुड़ने का स्त्रोत बहार तलाशते रहते हैं I सतत आत्म तत्त्व कि खोज सनातन धर्म का सार है I यही हिन्दू धर्म कि विशेषता है I यही भगवद गीता का सार है, और यही हमारे षड दर्शन भी बताते हैं I इन्ही वैचारिक स्रोतों से हिंदुत्व भी परिभाषित होता रहा है I हिन्दू धर्म आत्मा तत्त्व को ही सभी पशु पक्षिओं, जीव जंतुओं, और मनुष्यों का सार मानता है I उसी को जानने की प्रेरणा देता है I सारा अध्यात्म आत्मा को ही अनावृत करने का प्रयास है I परन्तु एक आम हिन्दू के लिए ये सब बातों की समझ आसान नहीं है I इन बातों का अर्थ साधना में रत साधक ही उचित प्रकार से समझ सकता है I तीज त्यौहार, रीती रिवाज़, हमारी पूजा पद्धितयां, यज्ञ, और अन्य धार्मिक अनुष्ठान और परमपराएँ सब हिन्दू धर्म का व्यावहारिक पक्ष ही दर्शाती हैं I विराट सनातन ज्ञान दर्शन के ये सभी बाहरी पक्ष हैं I इन भिन्नताओं के मिलन से ही पूर्ण का निर्माण होता है। ऐसा पूर्ण जो अपने भागों के योग से अनंत गुना बड़ा है। अतः कह सकते हैं ही हिन्दू धर्म कि परिभाषा उसके बाह्य स्वरुप से अधिक विस्तृत है I आत्मा तत्त्व को जानने के लिए प्रकृति कि समझ आवश्यक है I भारतीय दर्शन में पंचतत्व या पंचमहाभूतों- पृथ्वी (क्षिति), जल (अप्), अग्नि (ताप), वायु (पवन) एवं गगन (शून्य)) को ब्रह्मांड में व्याप्त लौकिक एवं अलौकिक वस्तुओं का कारण माना गया है। ब्रह्मांड में प्रकृति से उत्पन्न सभी वस्तुओं में पंचतत्व अलग-अलग मात्रा में व्याप्त हैं। इन पांच तत्वों से मनुष्य शरीर भी रचा गया है। अतः धरती, अग्नि, जल, पेड़, पौधे, जीव-जंतु-- प्रकृति के सभी रूप पूजनीय हैं I गंगा तथा अन्य नदियों की उपासना इसी भाव की एक कड़ी है I भारत में आयोजित कुंभ मेला करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था, परंपरा और हिंदू संस्कृति का प्रतीक है I हिंदू धर्म की गहरी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं को दर्शाता है। ऐसी मान्यता है कि संगम स्नान से आत्मा कि शुद्धि होती है । अपनी आत्मा के उत्थान के लिए हमें पुण्य एकत्रित करना चाहिए और अपना अगला जन्म सार्थक करना चाहिए I साथ ही साथ अपने पुरखों और अपने माता पिता के कल्याण के लिए भी माँ गंगा में डुबकी लेनी चाहिए I आम हिन्दुओं का यह गहन विश्वास रहा है कि यह सब कहीं न कहीं हमारे जीवन जो एक सकारात्मक रूप में बहुत गहनता से प्रभावित कर सकता है I 2025 में सनातन के सार की यही समझ लोगों की जीवन रेखा बन उनको विश्व भर से खींच कर एक छोटे से, परन्तु पावन नगर प्रयाग तक महा कुम्भ की यात्रा पर ले गयी I कुंभ में स्नान की इच्छा महा संक्रामक रही i लोगों ने एक दुसरे को सुन कर कुंभ जाने का मन बना लिया I हिंदुत्व कि अब इससे इतर क्या परिभाषा हो सकती है ? अपने आत्मा के कल्याण के लिए प्रकृति में विश्वास का प्रतीक माँ गंगा के शुभ आशीर्वाद कि इच्छा से प्रेरित, पुरखों के नाम पर डुबकियां लेने कितने ही लोग बहुत कष्ट कर कुंभ पहुंचे I यह सब देख कर बस यही कहा जा सकता है कि दैविक तत्वों में गहरी आस्था ही हिंदुत्व का सार है I बाकी सभी राजनैतिक, सामाजिक, बौद्धिक व्याख्याएं मात्र किताबी बातें हैं I ऐसा नहीं है कि उस दिन यह मेरा भीड़ में चलने का पहला अवसर था I पर संगम कि ओर बढ़ रही भीड़ का मनोविज्ञान इस बार बहुत अलग लगा I मौनी अमावस्या की भगदड़ के बारे में सभी को ज्ञात था पर किसी के ऊपर उसका कोई असर नहीं दिखा I लोगों का उत्साह देखते ही बनता था I बस लोग बढ़ रहे थे I किसी के भी चेहरे पर कोई व्याकुलता नहीं थी I भय नहीं था I किसी को कोई जल्दी भी नहीं थी I सभी के चेहरे पर अपूर्व शांति दिखी और ये लगा कि सब बस अपने गंतव्य कि ओर बढ़ रहे थे बिना किसी निराशा या जिज्ञासा कि अभी कितना दूर और चलना बाकी है I गंगा माँ में स्नान करने और डुबकी लगाने की लिए बहुत लोग १०-२० किलोमीटर चल कर संगम पहुंचे I सभी सधे हुए कदमों से कदम ताल कर रहे थे बिना किसी धक्का मुक्की के! हज़ारों पैदल श्रद्धालुओं को एकसाथ चलते देख कर ऑंखें भर आयीं I उनकी अदम्य आस्था देख कर मुझे लगा मैंने ईश्वर की दर्शन कर लिए I किसी दैविक शक्ति का अनुभव किया I उर्जात्मक युवाओं और हर उम्र की उत्साही महिलाओं को देख कर लगा कि इन सब में कितनी ऊर्जा है, जीवंतता है I इनको कहीं भी किसी भी कार्य में लगा दिया जाये तो ये क्या से क्या कर सकते हैं I यही उत्साह और ऊर्जा हमारे राष्ट्र की प्राणवायु के रूप में काम करती है I देश कि चित्ती यही है जिसको महान चिंतक और प्रखर विचारक दीन दयाल उपाध्याय अपने जीवन काल में परिभाषित करते रहे ! यही गहरी धार्मिक आस्था हमारा वैशिष्ट्य बन कर हमारी संस्कृति को जीवंत करती है I यह अटल विश्वास किसी रूढ़िवादिता या अन्धविश्वास का द्योतक नहीं है I यह लोगों की अपार ऊर्जा ही देश को जोड़ती है I दीन दयाल जी ने भारत की चित्ती का आधार धर्म बताया है I यहाँ 'धर्म' का अर्थ रिलिजन नहीं है I धर्म यानि वह जो हमें सही समय पर, सही सोच की साथ उचित कार्य करने की लिए प्रेरित करता है I इस चित्ती को दीन दयाल जी ने भारत वासियों का आतंरिक गुण माना जो समय समय पर सामाजिक व्यहार में उभर आती है I हम जो अंदर से वास्तव में हैं वही हमारी चित्ती है I यही सामूहिक चेतना ही भारत की आत्मा है, उसका आधार है I भारत की राष्ट्रीय संस्कृति है I पं. दीनदयाल उपाध्याय कहते थे कि हिन्दू कोई धर्म या संप्रदाय नहीं बल्कि सनातन संस्कृति है I राष्ट्र की आत्मा ही संस्कृति है I और चित्ती वह है जो देश की संस्कृति को प्रकाशित कर दे I देश कि चित्ती में एक समाज की और राष्ट्र की समझ होती है I किसी देश की सामूहिक चेतना उसकी सामूहिक समझ का प्रतीक है I निश्चय हि भारत की चित्ती में प्रेम है, अध्यात्म की गहराई है और अप्रतिम सरलता है I इस महा कुम्भ को हमें एक सफल प्रयोग की तरह देखना चाहिए जो इंगित करता है कि यदि देश के युवाओं की यह ऊर्जा को केंद्र में लाया जा सके तो देश विश्व स्तर पर सबसे ऊपर होगा I- Mar 05, 2025
- Ramaharitha Pusarla